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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

भगवदर्पण करें

संसारमें नाना कार्य, विभिन्न स्थितियाँ परिवर्तन क्यों हो रहे है? अन्यथा क्यों नहीं होते? क्या इनमें कोई निश्चित क्रम, उद्देश्य अथवा विधि है? हम इन परिवर्तनों से डरे या नहीं? हमारा इन कायाके प्रति क्या लक्ष्य हो?

सृष्टि तथा मानवसमाजके सब कार्य विधिके पूर्वनिर्दिष्ट विधानके अनुसार सम्पन्न हो रहे है। परमेश्वरने सब कार्य-प्रणाली पहलेसे ही सुनिक्षित कर रखी है। उसी अटल क्रमके अनुसार सृष्टिके अच्छे-बुरे परिणाम प्रकट हो रहे है। अनेक बार ऐसे कार्य अथवा विषम परिस्थितियाँ हमारे सामने उपस्थित हो जाती है कि हम स्वयं अपनेसे, समाजसे तथा भगवान् से कुद्ध हो उठते है। अपनेकी कोसते है, परिस्थितियोंको धिक्कारते है, अनेक व्यक्तियोंको अपने दुःख, अवनति, विरोधका उत्तरदायी ठहराते है। हमें ऐसा प्रतीत होता है मानो हमारे साथ बड़ा अत्याचार हो रहा है। मानो सभी हमारे पीछे हमारा अशुभ, हानि, अवनति करनेमें लगे है। हम असहाय और निरुपाय, हतबुद्धि-से हो जाते है।

आप अपना कर्त्तव्य करें, फल की रक्षा परमेश्वरपर छोड़ दें। दूसरे शब्दोंमें अपने व्यक्तित्वको भगवान् से सम-स्वर (in tune with the infinite) कर लें। हम ज्यों-ज्यों कर्मके पश्चात् भगवाप्से चरण-कमलोंकी संनिधि प्राप्त करते है, त्यों-त्यों हमारा हृदय शुद्ध होता जाता है और विषयोंका विषैला प्रभाव जाता रहता है।

अपना अधिकाधिक सम्बन्ध भगवान् से जोड़ते रहिये। उन्हींका चिन्तन करने तथा आत्मस्वरूप भगवान्का गुणानुवन्द करनेसे हमारे हृदयमें सोये हुए देवता जाग्रत् होते है, प्रेममयी भक्ति का उदय होता है और जीवन पवित्र हो जाता है।

कलियुगमें वातावरणके कारण मनुष्यमें अनेक दोष आ गये है। कारण, मनुष्यका अन्तःकरण दूषित राग-द्वेषमयी विचारधारासे परिपूर्ण हो उठा है। कर्मबन्धनोंसे कृत्रिम आवश्यकताओं और माया-मोहके अन्धकारने हमारी बुद्धिको दोषयुक्त बना दिया है। अब यदि हम दोषोंके आदिस्रोत अन्तःकरणमें पुरुषोत्तमभगवान् को विराजमानकर तदविषयक चिन्तन करें तो उनके नाम-रूप-गुणानुवादसे पवित्र विचारधाराका नवोन्मेष हो सकता है।

शतः संकीर्तितो ध्यातः पूजितश्चादृतोमऽपि वा।
नृणां धुनोति भगवान् हत्स्थो जन्मायुताशुभम्।।

(श्रीमद्भा. १२।३।४६) 
'भगवान्के रूप, गुण, लीला, धाम और नामके श्रवण-संकीर्तन, ध्यान-पूजन और आदरसे वे मनुष्यके हृदयमें आ विराजते है और एक-दो जन्मोंके पापोंकी तो बात ही क्या, हजारों जन्मोंके पापके ढेर-के-ढेर भी क्षणभरमें भस्म कर देते हैं।'

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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